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आज हम एक अहम फैसले पर चर्चा करेंगे जो
इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (Insolvency and Bankruptcy Code), 2016 और
व्यक्तिगत गारंटर (Personal Guarantors) की देनदारी से जुड़ा है। हाल ही में
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए यह साफ कर दिया कि अगर कोई व्यक्ति किसी कंपनी के लोन का गारंटर बना है, तो वह दिवालियापन प्रक्रिया से बच नहीं सकता। इस फैसले ने बैंकों और अन्य कर्जदाताओं के लिए एक मिसाल कायम की है।
मामले की पृष्ठभूमि
इस केस में उत्तरदाता
Associate Decor Limited नाम की एक कंपनी का प्रमोटर और डायरेक्टर था। यह कंपनी 2010 से अलग-अलग बैंकों से लोन ले रही थी। लोन को सुरक्षित करने के लिए
उत्तरदाता संख्या 1 ने एक गारंटी डीड (Deed of Guarantee) पर हस्ताक्षर किए थे, यानी अगर कंपनी लोन चुकाने में विफल रहती, तो उसे खुद यह भुगतान करना पड़ता।
समय बीतने के साथ, कंपनी वित्तीय संकट में आ गई और लोन चुकाने में असफल रही। इसके बाद बैंकों ने पहले
कॉर्पोरेट दिवालियापन प्रक्रिया (Corporate Insolvency Resolution Process – CIRP) शुरू की और फिर
व्यक्तिगत दिवालियापन (Personal Insolvency) की कार्यवाही भी शुरू कर दी।
क्या हुआ हाई कोर्ट में?
जब न्यायाधिकरण (Adjudicating Authority) ने
16 फरवरी 2024 को एक
समाधान पेशेवर (Resolution Professional) नियुक्त किया और उसे रिपोर्ट तैयार करने का आदेश दिया, तो उत्तरदाता संख्या 1 ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि
उत्तरदाता संख्या 1 की देनदारी समाप्त हो चुकी है, और इसलिए उसने व्यक्तिगत दिवालियापन प्रक्रिया को रोक दिया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
बैंकों ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि
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- हाई कोर्ट ने अनुच्छेद 226 के तहत इस मामले में हस्तक्षेप कर के गलती की।
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- IBC के तहत व्यक्तिगत गारंटर की जिम्मेदारी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
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- हाई कोर्ट का आदेश रद्द किया जाता है और व्यक्तिगत दिवालियापन की प्रक्रिया फिर से बहाल की जाती है।
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- अब समाधान पेशेवर (Resolution Professional) अपनी जांच करेगा और IBC की धारा 99 के तहत रिपोर्ट देगा।
इस फैसले का क्या प्रभाव पड़ेगा?
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- यह फैसला उन सभी प्रमोटर्स और गारंटरों के लिए एक चेतावनी है जो कंपनियों के लोन की गारंटी देते हैं लेकिन बाद में जिम्मेदारी से बचने की कोशिश करते हैं।
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- अब बैंक और कर्जदाता व्यक्तिगत गारंटरों से भी वसूली कर सकेंगे, जिससे उन्हें नुकसान कम होगा।
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- यह निर्णय IBC की पारदर्शिता और प्रभावशीलता को मजबूत करता है और कर्जदाताओं के अधिकारों की रक्षा करता है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला
बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिए एक महत्वपूर्ण राहत है क्योंकि अब व्यक्तिगत गारंटर अपनी देनदारी से बच नहीं सकते। यदि कोई प्रमोटर या निदेशक अपनी कंपनी के लोन के लिए गारंटर बना है, तो उसे
उसकी जिम्मेदारी लेनी ही होगी।
इस फैसले से यह भी स्पष्ट हो गया कि
IBC के तहत व्यक्तिगत गारंटी देने वाले लोग कानून से बचने के लिए हाई कोर्ट का सहारा नहीं ले सकते। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस फैसले का
व्यक्तिगत गारंटी देने वाले अन्य मामलों पर क्या असर पड़ता है।