यह केस न केवल अपराधिक न्याय प्रणाली में सबूत के महत्व को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे परिस्थितिगत सबूत (Circumstantial Evidence) और नाबालिग गवाह (Child Witness) की गवाही को न्यायिक विधि में महत्वपूर्ण माना जा सकता है।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 24 फरवरी, 2025 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसने कानूनी प्रक्रिया और साक्ष्य के आंकलन के बारे में कई महत्वपूर्ण सवालों को उठाया है। यह मामला बलवीर सिंह Vs मध्य प्रदेश राज्य का है, जिसमें एक पति को उसकी पत्नी की हत्या के आरोप में जिम्मेदार ठहराया गया था।
केस की पृष्ठभूमि(Case Background)
15 जुलाई 2003 की रात का है, जब बलवीर सिंह की पत्नी ‘बिरेंद्र कुमारी’ की मौत उनके घर में हुई। बलवीर सिंह और बिरेंद्र कुमारी के दो बेटे और एक बेटी ‘रानी’ जो उस समय सिर्फ 7 साल की थी। एक रात को बिरेंद्र कुमारी के चिल्लाने और रोने की आवाजें सुनाई दीं, लेकिन कुछ देर बाद सब कुछ शांत हो गया। अगली सुबह गाँव वालों को पता चला कि बिरेंद्र कुमारी की मौत हो गई है और उसकी लाश रात में ही जला दिया गया है।
इस घटना के बाद, बिरेंद्र कुमारी के भाई भुरा सिंह और पिता भरत सिंह ने पुलिस में शिकायत दर्ज की। पुलिस ने जांच में पाया कि बलवीर सिंह ने अपनी पत्नी की हत्या करके उसकी लाश को जला दिया। इसके बाद, बलवीर सिंह और उसकी बहन जतन बाई के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 (हत्या), 201 (साक्ष्य को छिपाना) और 34 (साझा इरादा) के तहत मामला दर्ज किया गया।
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निचली अदालत का निर्णय(Decision of the Lower Court)
निचली अदालत ने बलवीर सिंह को कसूरवार ठहराया और उसे आजीवन कारावास(Life Imprisonment) की सजा सुनाई। कोर्ट ने रानी की गवाही को जरूरी माना, जो इस घटना की इकलौता चश्मदीद गवाह थी। रानी ने बताया कि उसने अपनी आँखों से देखा कि कैसे उसके बाप ने उसकी माँ की गर्दन पर पैर रखकर उसे मौत के घाट उतार दिया।

Child Witness
हाई कोर्ट का फैसला(Decision of the High Court)
हाई कोर्ट ने बलवीर सिंह के खिलाफ निचली अदालत के फैसले को पलट दिया और उसे बरी कर दिया। हाई कोर्ट ने रानी की गवाही को संदिग्ध माना और कहा कि उसकी गवाही को छेड़छाड़ किया गया (सिखाया गया) होने की संभावना है।
हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस ने रानी का बयान 18 दिनों के बाद दर्ज किया, जिससे यह संभावना बनती है कि उसे सिखाया गया हो।
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सर्वोच्च न्यायालय का फैसला(Decision of the Supreme Court)
सर्वोच्च न्यायालय ने हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया और ट्रायल कोर्ट के फैसले को बहाल कर दिया। कोर्ट ने कहा कि रानी की गवाही विश्वसनीय है और उसे सिर्फ इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि वह एक बच्ची है। कोर्ट ने यह भी कहा कि परिस्थितिगत सबूत(Circumstantial Evidence)और बाल साक्षी की गवाही को न्यायिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए।
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नाबालिग गवाह की गवाही का महत्व(Importance of the Testimony of a Minor Witness)
सर्वोच्च न्यायालय ने नाबालिग गवाह की गवाही के महत्व पर विस्तार से चर्चा की। कोर्ट ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872(Indian Evidence Act, 1872) की धारा 118 के तहत, एक बच्चा भी गवाही दे सकता है, यदि वह सवालों को समझने और तर्क संगत जवाब देने में सक्षम हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि नाबालिग गवाह की गवाही को सिर्फ इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि वह एक बच्चा है।
कोर्ट ने कहा कि नाबालिग गवाह की गवाही को सावधानी पूर्वक जांचा जाना चाहिए, लेकिन अगर वह विश्वसनीय और सच्ची लगती है, तो उसे माना जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि नाबालिग गवाह की गवाही को छेड़छाड़ किया गया होने की संभावना को खारिज करने के लिए, कोर्ट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि गवाही उसकी अपनी इच्छा से व्यक्त किया गया है और किसी अन्य के प्रभाव में नहीं है।
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परिस्थितिगत सबूत का महत्व(Importance of Circumstantial Evidence)
सर्वोच्च न्यायालय ने परिस्थितिगत सबूत(Circumstantial Evidence) के महत्व पर भी चर्चा की। कोर्ट ने कहा कि परिस्थितिगत सबूत के आधार पर भी एक व्यक्ति को दोषी ठहराया जा सकता है, यदि अभियोजन पक्ष(Prosecution) यह साबित करे कि सभी परिस्थितियाँ एक साथ मिलकर एक सिलसिला बनती हैं जो आरोपी को अपराधी साबित करने की ओर इशारा करती हैं।
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में, बलवीर सिंह ने अपनी पत्नी की मौत के बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया, जो कि उसके खिलाफ एक महत्वपूर्ण परिस्थितिगत सबूत है। कोर्ट ने यह भी कहा कि बलवीर सिंह का यह व्यवहार कि उसने अपनी पत्नी की लाश को गुप्त रूप से जलाया और भाग गया, उसके खिलाफ एक और महत्वपूर्ण सबूत है।
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धारा 106 का महत्व(Importance of Section 106)
सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम(Indian Evidence Act, 1872) की धारा 106 के महत्व पर भी चर्चा की। इस धारा के अनुसार, यदि कोई सबूत किसी व्यक्ति के विशेष ज्ञान में है, तो उस सबूत को साबित करने का भार उस पर होता है।
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में, बलवीर सिंह पर यह भार था कि वह अपनी पत्नी की मौत के बारे में स्पष्टीकरण दे, क्योंकि यह तथ्य उसके विशेष ज्ञान में था।
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निष्कर्ष(Conclusion)
सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले को बहाल करते हुए कहा कि बलवीर सिंह को उसकी पत्नी की हत्या के आरोप में दोषी ठहराया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में नाबालिग गवाह की गवाही और परिस्थितिगत सबूत को महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए।
यह फैसला न केवल भारतीय न्यायिक प्रणाली में साक्ष्य के महत्व को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे न्यायालय को ऐसे मामलों में संवेदनशीलता और हकीकत पर आधारित नजरिया अपनाना चाहिए।
इस ब्लॉग पोस्ट में, हमने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के एक महत्वपूर्ण फैसले के बारे में विस्तार से चर्चा की है। यह फैसला न केवल न्यायिक प्रक्रिया में साक्ष्य के महत्व को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे बाल साक्षी और परिस्थितिजन्य साक्ष्य को न्यायिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए।

Life Imprisonment
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों मानी 7 साल की बच्ची की गवाही? जानिए इस फैसले से जुड़े सभी सवालों के जवाब!
1. नाबालिग गवाह (Child Witness) क्या होता है?
नाबालिग गवाह वह बच्चा होता है जो किसी घटना का गवाह होता है और अदालत में गवाही देता है। भारतीय कानून के तहत, नाबालिग गवाह की गवाही को तब वैध माना जाता है जब तक कि वह सवालों को समझने और तर्क संगत जवाब देने में सक्षम हो।
2. परिस्थितिगत सबूत (Circumstantial Evidence) क्या होता है?
परिस्थितिगत सबूत वह सबूत होता है जो सीधे तौर पर अपराध को साबित नहीं करता, लेकिन परिस्थितियों के आधार पर अपराधी की गुत्थी सुलझाता है। इसमें अप्रत्यक्ष सबूतों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि अपराध के समय आरोपी की मौजूदगी, व्यवहार, या अन्य संदेहास्पद गतिविधियां।
3. भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 (Indian Evidence Act Section 106) क्या है?
धारा 106 के अनुसार, यदि कोई तथ्य किसी व्यक्ति के विशेष ज्ञान में है, तो उस तथ्य को साबित करने का भार उस व्यक्ति पर होता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति की पत्नी की मौत संदेहास्पद परिस्थितियों में हुई है, तो पति को यह स्पष्टीकरण देना होगा कि मौत कैसे हुई।
4. सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग गवाह की गवाही को क्यों महत्व दिया?
सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग गवाह की गवाही को इसलिए महत्व दिया क्योंकि वह घटना की एकमात्र चश्मदीद गवाह थी। कोर्ट ने कहा कि नाबालिग गवाह की गवाही को सिर्फ इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि वह एक बच्ची है, बशर्ते कि उसकी गवाही विश्वसनीय और सच्ची हो।
5. परिस्थितिगत सबूत के आधार पर किसी को दोषी कैसे ठहराया जा सकता है?
परिस्थितिगत सबूत के आधार पर किसी को दोषी ठहराने के लिए, अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि सभी परिस्थितियाँ एक साथ मिलकर एक ऐसी श्रृंखला बनाती हैं जो केवल आरोपी के अपराधी होने की ओर इशारा करती है। इसमें कोई अन्य संभावना नहीं होनी चाहिए।
6. भारतीय न्याय प्रणाली में नाबालिग गवाह की गवाही का क्या महत्व है?
भारतीय न्याय प्रणाली में नाबालिग गवाह की गवाही का बहुत महत्व है। अदालतें नाबालिग गवाह की गवाही को सावधानीपूर्वक जांचती हैं, लेकिन अगर वह विश्वसनीय और सच्ची लगती है, तो उसे मान्य माना जाता है। नाबालिग गवाह की गवाही कई बार निर्णायक साबित होती है।
7. क्या नाबालिग गवाह की गवाही को अदालत में चुनौती दी जा सकती है?
हां, नाबालिग गवाह की गवाही को अदालत में चुनौती दी जा सकती है। वकील नाबालिग गवाह के बयान में विसंगतियों या ट्यूटर होने की संभावना को उजागर कर सकते हैं। हालांकि, अदालत को यह सुनिश्चित करना होगा कि गवाही सच्ची और विश्वसनीय है।