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Indian Law Query > High Court > क्या आपकी निजी संपत्ति (Private Property) को भी हो रहा है नुकसान (Damage)? जानिए धारा 133 CrPC के तहत अदालत का महत्वपूर्ण फैसला!
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क्या आपकी निजी संपत्ति (Private Property) को भी हो रहा है नुकसान (Damage)? जानिए धारा 133 CrPC के तहत अदालत का महत्वपूर्ण फैसला!

JagDeep Singh
Last updated: 2025/03/01 at 6:53 PM
JagDeep Singh
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11 Min Read
Damage To Public/Private Property, Section 133 CrPC
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भारतीय न्यायिक प्रणाली में अक्सर ऐसे मामले सामने आते हैं जहां निजी संपत्ति(Private Property) और सार्वजनिक संपत्ति(Public Property) हित के बीच संघर्ष होता है। ऐसा ही एक मामला बिहार के दरभंगा जिले का है, जहां काशी कांत झा और गिरींद्र मोहन झा के बीच गंदे पानी के बहाव को लेकर विवाद हुआ। यह मामला न केवल निजी संपत्ति के अधिकारों को लेकर है, बल्कि यह सार्वजनिक उपद्रव (Public Nuisance) और निजी उपद्रव (Private Nuisance) के बीच के अंतर को भी स्पष्ट करता है। आइए, इस मामले की पूरी कहानी और अदालत के फैसले को विस्तार से समझते हैं।

Contents
मामले की पृष्ठभूमि(Background of the Case)Also Read- Domestic Violence Act पर लापरवाही! Supreme Court ने States-UTs पर ठोका भारी जुर्माना!अदालत की कार्यवाही और तर्क(Court Proceedings and Arguments)काशी कांत झा की दलीलेंगिरींद्र मोहन झा की दलीलेंAlso Read– Insolvency and Bankruptcy Code पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: क्या अब लोन गारंटर बच सकते हैं कर्ज़ से?हाई कोर्ट का फैसला(High Court’s Decision)Also Read- विवाह टूटने पर तलाक(Divorce) और 25 लाख का गुज़ारा भत्ता(Alimony), पासपोर्ट जब्त करने पर सख्त रोक! Supreme Courtधारा 133 CrPC का महत्व(Significance of Section 133 CrPC)Also Read- बिना जांच सीधे FIR हो सकती है! सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला | Prevention Of Corruption Actनिजी संपत्ति और सार्वजनिक हित के बीच संतुलनAlso Read- प्रॉपर्टी लोन लेने से पहले जानें: ‘Equitable Mortgage’ और ‘Legal Mortgage’ में क्या है अंतर?निष्कर्ष(Conclusion)Also Read- रहस्यमयी मौत का सच: पति ने पत्नी को मारकर शव जलाया, लेकिन 7 साल की बेटी (Child Witness) ने खोल दिया राज! परिस्थितिगत सबूत (Circumstantial Evidence) ने पलट दी कहानी!Click Here to Read Full OrderFAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)1. धारा 133 CrPC क्या है?2. सार्वजनिक उपद्रव और निजी उपद्रव में क्या अंतर है?3. निजी संपत्ति के अधिकार क्या हैं?4. क्या एसडीएम निजी विवादों में हस्तक्षेप कर सकता है?Table of Contents

मामले की पृष्ठभूमि(Background of the Case)

यह मामला दरभंगा जिले के केओटी थाना क्षेत्र के रनवे गांव का है। यहां काशी कांत झा और गिरींद्र मोहन झा पड़ोसी हैं। गिरींद्र मोहन झा ने शिकायत की कि काशी कांत झा ने उनके घर से निकलने वाले गंदे पानी के बहाव में रुकावट पैदा कर दी हे। गिरींद्र मोहन का कहना था कि गंदा पानी सरकारी जमीन पर बहता था, और काशी कांत झा को इसे रोकने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि इस रुकावट के कारण उनके घर के आसपास गंदे पानी का जमाव हो गया है, जिससे महामारी फैलने का खतरा पैदा हो गया है।

इस शिकायत पर, दरभंगा के एसडीएम (सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट) ने जांच की और काशी कांत झा को गंदे पानी के बहाव में रुकावट हटाने का आदेश दिया। हालांकि, काशी कांत झा ने इस आदेश को चुनौती दी और सेशन कोर्ट में अपील की। सेशन कोर्ट ने भी एसडीएम के आदेश को बरकरार रखा। इसके बाद, काशी कांत झा ने पटना हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

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अदालत की कार्यवाही और तर्क(Court Proceedings and Arguments)

काशी कांत झा की दलीलें

  1. निजी संपत्ति का अधिकार: काशी कांत झा ने दावा किया कि जिस जमीन पर गंदा पानी बह रहा है, वह उनकी निजी संपत्ति है। उन्होंने कहा कि गिरींद्र मोहन झा को उनकी संपत्ति पर गंदा पानी बहाने का कोई अधिकार नहीं है।
  2. सार्वजनिक उपद्रव का अभाव: उन्होंने यह भी कहा कि यह मामला सार्वजनिक उपद्रव (Public Nuisance) नहीं है, बल्कि यह केवल दो पड़ोसियों के बीच का विवाद है।
  3. एसडीएम की गलती: काशी कांत झा ने आरोप लगाया कि एसडीएम ने धारा 133 CrPC के तहत आदेश पारित करते समय उन्हें सुनवाई का मौका नहीं दिया। उन्होंने कहा कि एसडीएम को पहले एक सशर्त आदेश (Conditional Order) पारित करना चाहिए था, जिसमें उन्हें कारण बताने का मौका मिलता।

गिरींद्र मोहन झा की दलीलें

गिरींद्र मोहन झा ने कहा कि गंदे पानी के जमाव से उनके घर और आसपास के लोगों को परेशानी हो रही है। उन्होंने यह भी कहा कि गंदे पानी के कारण महामारी फैलने का खतरा है, और इसलिए एसडीएम का आदेश सही है।

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हाई कोर्ट का फैसला(High Court’s Decision)

पटना हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की और काशी कांत झा की याचिका को स्वीकार करते हुए एसडीएम और सेशन कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि:

  1. निजी संपत्ति का अधिकार: जिस जमीन पर गंदा पानी बह रहा है, वह काशी कांत झा की निजी संपत्ति है। गिरींद्र मोहन झा को इस जमीन पर गंदा पानी बहाने का कोई अधिकार नहीं है।
  2. सार्वजनिक उपद्रव का अभाव: कोर्ट ने कहा कि यह मामला सार्वजनिक उपद्रव (Public Nuisance) नहीं है, बल्कि यह केवल दो पड़ोसियों के बीच का विवाद है। ऐसे मामलों में धारा 133 CrPC का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
  3. एसडीएम की गलती: कोर्ट ने कहा कि एसडीएम ने काशी कांत झा को सुनवाई का मौका दिए बिना ही अंतिम आदेश (Final Order) पारित कर दिया, जो कानूनी रूप से गलत है।

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धारा 133 CrPC का महत्व(Significance of Section 133 CrPC)

धारा 133 CrPC (दंड प्रक्रिया संहिता) का उपयोग सार्वजनिक उपद्रव (Public Nuisance) को दूर करने के लिए किया जाता है। यह धारा एसडीएम या अन्य कार्यकारी मजिस्ट्रेट को यह अधिकार देती है कि वे सार्वजनिक स्थानों पर हो रहे उपद्रव को दूर करने के लिए आदेश पारित कर सकते हैं।

हालांकि, इस धारा का उपयोग केवल तब किया जा सकता है जब सार्वजनिक हित प्रभावित हो रहा हो। यदि मामला केवल दो व्यक्तियों के बीच का विवाद है, तो इस धारा का प्रयोग नहीं किया जा सकता।

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निजी संपत्ति और सार्वजनिक हित के बीच संतुलन

यह मामला निजी संपत्ति के अधिकार और सार्वजनिक हित के बीच के संतुलन को समझने का एक बेहतरीन उदाहरण है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 300-A के तहत, हर व्यक्ति को अपनी संपत्ति का अधिकार है। हालांकि, इस अधिकार का उपयोग करते समय यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि इससे किसी और को नुकसान न हो।

इस मामले में, हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि गिरींद्र मोहन झा को काशी कांत झा की निजी संपत्ति पर गंदा पानी बहाने का कोई अधिकार नहीं है। यदि उन्हें कोई समस्या है, तो उन्हें सिविल कोर्ट का रुख करना चाहिए।


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निष्कर्ष(Conclusion)

  1. निजी संपत्ति का अधिकार: हर व्यक्ति को अपनी संपत्ति का उपयोग करने का अधिकार है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह दूसरों को नुकसान पहुंचाए।
  2. सार्वजनिक उपद्रव और निजी उपद्रव में अंतर: सार्वजनिक उपद्रव (Public Nuisance) वह है जो पूरे समुदाय को प्रभावित करता है, जबकि निजी उपद्रव (Private Nuisance) केवल कुछ व्यक्तियों को प्रभावित करता है।
  3. कानूनी प्रक्रिया का पालन: अदालतों को कानूनी प्रक्रिया का सख्ती से पालन करना चाहिए। एसडीएम ने इस मामले में काशी कांत झा को सुनवाई का मौका दिए बिना ही आदेश पारित कर दिया, जो गलत था।

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FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)

1. धारा 133 CrPC क्या है?

धारा 133 CrPC (दंड प्रक्रिया संहिता) का उपयोग सार्वजनिक उपद्रव (Public Nuisance) को दूर करने के लिए किया जाता है। यह धारा एसडीएम या अन्य कार्यकारी मजिस्ट्रेट को यह अधिकार देती है कि वे सार्वजनिक स्थानों पर हो रहे उपद्रव को दूर करने के लिए आदेश पारित कर सकते हैं।

2. सार्वजनिक उपद्रव और निजी उपद्रव में क्या अंतर है?

सार्वजनिक उपद्रव (Public Nuisance) वह है जो पूरे समुदाय को प्रभावित करता है, जबकि निजी उपद्रव (Private Nuisance) केवल कुछ व्यक्तियों को प्रभावित करता है।

3. निजी संपत्ति के अधिकार क्या हैं?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 300-A के तहत, हर व्यक्ति को अपनी संपत्ति का अधिकार है। हालांकि, इस अधिकार का उपयोग करते समय यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि इससे किसी और को नुकसान न हो।

4. क्या एसडीएम निजी विवादों में हस्तक्षेप कर सकता है?

नहीं, एसडीएम का काम सार्वजनिक उपद्रव (Public Nuisance) को दूर करना है। निजी विवादों का निपटारा सिविल कोर्ट में होना चाहिए।


यह मामला न केवल निजी संपत्ति के अधिकारों को लेकर है, बल्कि यह सार्वजनिक उपद्रव और निजी उपद्रव के बीच के अंतर को भी स्पष्ट करता है। इस फैसले से हमें यह सीख मिलती है कि कानूनी प्रक्रिया का सख्ती से पालन करना कितना जरूरी है।

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    • 2. सार्वजनिक उपद्रव और निजी उपद्रव में क्या अंतर है?
    • 3. निजी संपत्ति के अधिकार क्या हैं?
    • 4. क्या एसडीएम निजी विवादों में हस्तक्षेप कर सकता है?

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