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चेक बाउंस केस(Cheque Bounce) में बड़ा फैसला! सुप्रीम कोर्ट ने कहा – ‘यहां दायर होगा केस, ट्रांसफर नहीं!’ | जानें पूरा मामला

JagDeep Singh
Last updated: 2025/03/14 at 12:49 PM
JagDeep Singh
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9 Min Read
Cheque Bounce The Negotiable Instruments Act 1881
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भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में चेक बाउंस (Cheque Bounce) “M/s श्री सेंधुर एग्रो एंड ऑयल इंडस्ट्रीज बनाम कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड(M/S SHRI SENDHURAGRO AND OIL INDUSTRIES PRANAB PRAKASH v. KOTAK MAHINDRA BANK LTD.)” मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें ट्रांसफर याचिका को खारिज कर दिया गया। यह मामला नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 (The Negotiable Instruments Act 1881) की धारा 138(Section 138) के तहत चेक बाउंस से संबंधित था। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि किसी मामले को केवल सुविधा या असुविधा के आधार पर स्थानांतरित (Transfer) नहीं किया जा सकता। यह निर्णय न केवल बैंकिंग और कानूनी क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि उन सभी के लिए भी अहम है, जो चेक बाउंस मामलों में शामिल होते हैं।

Contents
मामले की पूरी कहानी: चेक बाउंस(Cheque Bounce) से लेकर कोर्ट तकAlso Read– Insolvency and Bankruptcy Code पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: क्या अब लोन गारंटर बच सकते हैं कर्ज़ से?न्यायालय का फैसलाAlso Read- प्रॉपर्टी लोन लेने से पहले जानें: ‘Equitable Mortgage’ और ‘Legal Mortgage’ में क्या है अंतर?नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881(The Negotiable Instruments Act 1881) की धारा 138 और 142धारा 142(Section 142) क्या है?Also Read- क्या आपकी निजी संपत्ति (Private Property) को भी हो रहा है नुकसान (Damage)? जानिए धारा 133 CrPC के तहत अदालत का महत्वपूर्ण फैसला!कोर्ट का विश्लेषण1. ट्रांसफर का आधार2. “न्याय” के लिए ट्रांसफर का आधार3. नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 में संशोधनइस फैसले का महत्वClick Here to Read Full Orderनिष्कर्ष: यह फैसला क्यों है जरूरी?

मामले की पूरी कहानी: चेक बाउंस(Cheque Bounce) से लेकर कोर्ट तक

M/s श्री सेंधुर एग्रो एंड ऑयल इंडस्ट्रीज, जो कि कोयंबटूर, तमिलनाडु में स्थित है, ने कोटक महिंद्रा बैंक से ऋण लिया था। पूरी ऋण प्रक्रिया और सभी लेन-देन कोयंबटूर शाखा में हुए थे। हालांकि, जब चेक बाउंस हुआ, तो बैंक ने चंडीगढ़ में मामला दायर कर दिया।

याचिकाकर्ता (M/s श्री सेंधुर एग्रो एंड ऑयल इंडस्ट्रीज) ने तर्क दिया कि चंडीगढ़ में कोई कारण-कार्रवाई (Cause of Action) उत्पन्न नहीं हुई, क्योंकि सभी लेन-देन कोयंबटूर में हुए थे। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बैंक ने जानबूझकर मामला चंडीगढ़ में दायर किया ताकि उन्हें परेशान किया जा सके और उन्हें लंबी दूरी तय करने के लिए मजबूर किया जा सके।

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न्यायालय का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसफर याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 142(2) के तहत, बैंक को यह अधिकार है कि वह उस अदालत में मामला दायर कर सकता है, जहां चेक प्रस्तुत किया गया है।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर याचिकाकर्ता (Petitioner) को चंडीगढ़ आने में कठिनाई होती है, तो वह व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट (Exemption) ले सकता है या ऑनलाइन सुनवाई में भाग ले सकता है।

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नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881(The Negotiable Instruments Act 1881) की धारा 138 और 142

इस मामले में नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 और 142 का विशेष महत्व है। धारा 138 चेक बाउंस के मामलों से संबंधित है, जबकि धारा 142 यह निर्धारित करती है कि ऐसे मामलों में केस कहां दायर किया जा सकता है।

धारा 138(Section 138) क्या है?

यदि कोई व्यक्ति चेक जारी करता है और बैंक उसे अपर्याप्त धन (Insufficient Funds) के कारण बाउंस कर देता है, तो यह एक अपराध है। यदि व्यक्ति दोषी पाया जाता है, तो उसे 2 साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

धारा 142(Section 142) क्या है?

धारा 142 यह निर्धारित करती है कि चेक बाउंस(Cheque Bounce) मामलों में मुकदमा कहां दर्ज किया जा सकता है।

2015 के संशोधन (Amendment) से पहले यह स्पष्ट नहीं था।

2015 के संशोधन के बाद, धारा 142(2) यह स्पष्ट करती है कि यदि कोई चेक किसी भी बैंक शाखा में प्रस्तुत किया जाता है, तो मामला उस स्थान की अदालत में दर्ज किया जा सकता है, जहां वह शाखा स्थित है।

Also Read- क्या आपकी निजी संपत्ति (Private Property) को भी हो रहा है नुकसान (Damage)? जानिए धारा 133 CrPC के तहत अदालत का महत्वपूर्ण फैसला!

The Negotiable Instruments Act 1881

कोर्ट का विश्लेषण

सुप्रीम कोर्ट ने मामले का गहराई से अध्ययन किया और कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को उजागर किया।

1. ट्रांसफर का आधार

याचिकाकर्ता ने मामले को चंडीगढ़ से कोयंबटूर ट्रांसफर करने की मांग यह कहते हुए की कि चंडीगढ़ में कोई कारण-कार्रवाई (Cause of Action) उत्पन्न नहीं हुई और सभी लेन-देन कोयंबटूर में हुए।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बैंक ने उन्हें परेशान करने के लिए जानबूझकर मामला चंडीगढ़ में दायर किया।

हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 142(2) के तहत, बैंक को यह अधिकार है कि वह उस अदालत में मामला दायर कर सकता है, जहां चेक प्रस्तुत किया गया है।

2. “न्याय” के लिए ट्रांसफर का आधार

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सीआरपीसी (CrPC) की धारा 406 के तहत, मामले को “न्याय के हित में” (Expedient for the ends of justice) ट्रांसफर नहीं किया जा सकता।

इसके अलावा, केवल सुविधा या असुविधा के आधार पर मामला ट्रांसफर नहीं किया जा सकता। यदि याचिकाकर्ता को कोई समस्या होती है, तो वह व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट या ऑनलाइन सुनवाई का विकल्प चुन सकता है।

3. नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 में संशोधन

कोर्ट ने 2015 के संशोधन का भी उल्लेख किया, जिसमें धारा 142(2) को जोड़ा गया था।

संशोधन के अनुसार, यदि कोई चेक किसी बैंक शाखा में प्रस्तुत किया जाता है, तो मामला उस स्थान की अदालत में दर्ज किया जाएगा, जहां वह शाखा स्थित है।

कोर्ट ने कहा कि इस संशोधन का उद्देश्य मामलों को जल्द से जल्द निपटाना और प्रक्रिया को सुगम बनाना है।

इस फैसले का महत्व

यह फैसला बैंकिंग और कानूनी क्षेत्र के लिए ही नहीं, बल्कि उन सभी लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो चेक बाउंस मामलों में शामिल होते हैं।

फैसले के मुख्य बिंदु:

  1. धारा 142(2) के तहत बैंक को यह अधिकार है कि वह उस अदालत में मामला दर्ज कर सकता है, जहां चेक प्रस्तुत किया गया है।
  2. मामले को केवल सुविधा या असुविधा के आधार पर ट्रांसफर नहीं किया जा सकता।
  3. यदि याचिकाकर्ता को चंडीगढ़ आने में कठिनाई होती है, तो वह व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट (Exemption) ले सकता है या ऑनलाइन सुनवाई में भाग ले सकता है।

यह फैसला चेक बाउंस मामलों में कानूनी प्रक्रिया को अधिक स्पष्ट और प्रभावी बनाता है।

इसके अलावा, यह फैसला यह भी स्पष्ट करता है कि केवल पार्टियों की सुविधा या असुविधा के आधार पर केस को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता। अगर पेटीशनर को किसी भी तरह की समस्या है, तो वह अदालत से व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट की मांग कर सकता है या ऑनलाइन ही सुनवाई में शामिल हो सकता है।

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निष्कर्ष: यह फैसला क्यों है जरूरी?

यह फैसला न केवल बैंकिंग और कानूनी क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि उन सभी लोगों के लिए भी अहम है जो चेक बाउंस मामलों में शामिल होते हैं।

इस फैसले से यह स्पष्ट हो जाता है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 142(2) के तहत, बैंक को यह अधिकार है कि वह उस अदालत में मामला दर्ज कर सकता है, जहां चेक प्रस्तुत किया गया था।

इसके अलावा, यह भी स्पष्ट है कि मामले को केवल सुविधा या असुविधा के आधार पर ट्रांसफर नहीं किया जा सकता। यदि याचिकाकर्ता को कोई समस्या होती है, तो वह व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट (Exemption) का अनुरोध कर सकता है या ऑनलाइन सुनवाई में भाग ले सकता है।

इस प्रकार, यह फैसला कानूनी प्रक्रिया को अधिक स्पष्ट करता है और यह सुनिश्चित करता है कि न्याय हो।

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