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Indian Law Query > Supreme Court > CrPC Section 319: अपराध में शामिल नए अभियुक्तों को मुकदमे में जोड़ने की शक्ति
Supreme Court

CrPC Section 319: अपराध में शामिल नए अभियुक्तों को मुकदमे में जोड़ने की शक्ति

JagDeep Singh
Last updated: 2025/03/09 at 4:32 PM
JagDeep Singh
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9 Min Read
CrPC Section 319 Supreme Court
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परिचय

भारत की न्यायिक व्यवस्था में निष्पक्षता और न्याय को सबसे ऊपर रखा जाता है। यह व्यवस्था इस बात को सुनिश्चित करती है कि हर व्यक्ति को उचित न्याय मिले, चाहे वह आरोपी हो या पीड़ित। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि जांच के दौरान कुछ आरोपी छूट जाते हैं और उन्हें चार्जशीट में शामिल नहीं किया जाता। ऐसे मामलों में, धारा 319 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC Section 319) एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान के रूप में सामने आती है। यह धारा अदालत को यह अधिकार देती है कि अगर मुकदमे के दौरान कोई नया आरोपी सामने आता है, तो उसे भी उसी मुकदमे में शामिल किया जा सकता है।

Contents
परिचयAlso Read- विवाह टूटने पर तलाक(Divorce) और 25 लाख का गुज़ारा भत्ता(Alimony), पासपोर्ट जब्त करने पर सख्त रोक! Supreme CourtCrPC Section 319 क्या है?CrPC Section 319 का महत्वCrPC Section 319 का कानूनी पाठसमस्या: जब अपराधी बच निकलते हैंAlso Read- बिना जांच सीधे FIR हो सकती है! सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला | Prevention Of Corruption ActCrPC Section 319 का सही प्रयोग: सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसलाकेस की कहानी: क्या हुआ और कैसे?Trial Court का फैसलाHigh Court की पुनर्विचार याचिकाट्रायल कोर्ट का दूसरा आदेशHigh Court का अंतिम फैसला (2021)Supreme Court में अपील (2025)समाधान: Supreme Court का ऐतिहासिक फैसलाCrPC Section 319 कब लागू होगी?Also Read- Supreme Court ने बलात्कार के मामले में आरोपी को क्यों दिया लाभ? जानिए मेडिकल सबूत(Medical Evidence), विरोधी गवाह(Hostile Witness) और FIR में देरी का असर!निष्कर्ष: न्याय की जीतClick Here to Read Full Order

हाल ही में, Supreme Court Of India ने एक महत्वपूर्ण फैसले में CrPC Section 319 की व्याख्या की और यह स्पष्ट किया कि किन परिस्थितियों में और किस स्तर पर इस धारा के तहत किसी नए आरोपी को मुकदमे में शामिल किया जा सकता है। इस फैसले ने न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ावा दिया है। आइए, इस फैसले को विस्तार से समझते हैं और देखते हैं कि यह कानूनी प्रक्रिया को कैसे प्रभावित करता है।

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CrPC Section 319 क्या है?

CrPC Section 319 का महत्व

भारतीय न्यायिक व्यवस्था में धारा 319 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC Section 319) एक ऐसा प्रावधान है जो यह सुनिश्चित करता है कि अपराध में शामिल हर व्यक्ति को न्याय के कटघरे में खड़ा किया जाए। इस धारा का मुख्य उद्देश्य यह है कि कोई भी आरोपी कानूनी प्रक्रिया की तकनीकी खामियों या कमियों के कारण बच न सके। यह धारा अदालत को यह अधिकार देती है कि अगर मुकदमे के दौरान यह साबित हो जाए कि कोई अन्य व्यक्ति भी अपराध में शामिल है, तो उसे भी उसी मुकदमे में शामिल किया जा सकता है।

CrPC Section 319 का कानूनी पाठ

धारा 319 CrPC के अनुसार:

“जहां किसी अपराध की जांच या सुनवाई के दौरान यह प्रतीत होता है कि कोई अन्य व्यक्ति, जो पहले से अभियुक्त नहीं है, ने भी अपराध किया है, तो अदालत उसे अभियुक्त के रूप में जोड़ सकती है।”

इसका सीधा सा मतलब यह है कि अगर मुकदमे के दौरान कोई नया सबूत सामने आता है, जो यह दर्शाता है कि कोई अन्य व्यक्ति भी अपराध में शामिल था, तो अदालत उसे भी मुकदमे में शामिल कर सकती है। यह प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने में मदद करता है।

समस्या: जब अपराधी बच निकलते हैं

कई बार ऐसा होता है कि पुलिस द्वारा की गई जांच में कुछ आरोपी छूट जाते हैं, जिनका नाम चार्जशीट में नहीं होता। हो सकता है कि जांच एजेंसी ने पर्याप्त सबूत न पाए हों या किसी तकनीकी कारण से उनका नाम न जोड़ा गया हो। लेकिन बाद में, जब गवाहों के बयान अदालत में दर्ज किए जाते हैं, तब यह सामने आ सकता है कि कुछ और लोग भी अपराध में शामिल थे।

अब सवाल यह उठता है कि क्या अदालत के पास इतनी शक्ति है कि वह उन छूटे हुए अभियुक्तों को मुकदमे में शामिल कर सके?

Also Read- बिना जांच सीधे FIR हो सकती है! सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला | Prevention Of Corruption Act

CrPC Section 319 का सही प्रयोग: सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला

केस की कहानी: क्या हुआ और कैसे?

इस केस में, उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में 2009 में एक हत्या का मामला दर्ज किया गया था। पुलिस ने जांच के बाद सिर्फ दो लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की, जबकि एफआईआर में पाँच लोगों के नाम थे।

मुकदमे के दौरान, गवाहों के बयानों से यह सामने आया कि बाकी तीन आरोपी भी अपराध में शामिल थे, लेकिन उन्हें पुलिस द्वारा नामजद नहीं किया गया था।

पीड़ित पक्ष ने अदालत में धारा 319 CrPC के तहत एक आवेदन दायर किया, ताकि इन तीनों को भी मुकदमे में आरोपी बनाया जा सके।

Trial Court का फैसला

2010 में, ट्रायल कोर्ट ने यह कहते हुए आवेदन खारिज कर दिया कि गवाहों की जिरह (cross-examination) पूरी नहीं हुई थी और जांच एजेंसी की ओर से अभी भी जांच जारी थी।

High Court की पुनर्विचार याचिका

पीड़ित पक्ष ने इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ बेंच) में पुनर्विचार याचिका दाखिल की। हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि गवाहों की जिरह पूरी होने के बाद ट्रायल कोर्ट पुनः इस आवेदन पर विचार करे।

ट्रायल कोर्ट का दूसरा आदेश

2010 में, ट्रायल कोर्ट ने फिर से आवेदन खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि कोई नया ठोस सबूत नहीं है जिससे यह सिद्ध हो कि बाकी तीनों आरोपी हत्या में शामिल थे।

High Court का अंतिम फैसला (2021)

11 साल बाद, 2021 में हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया और आदेश दिया कि तीनों आरोपी मुकदमे में शामिल किए जाएं।

Supreme Court में अपील (2025)

मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जहाँ यह सवाल उठा कि क्या मुकदमे के 13 साल बाद भी अदालत किसी नए अभियुक्त को मुकदमे में शामिल कर सकती है?

समाधान: Supreme Court का ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि:

  1. अगर मुकदमा पूरा हो चुका हो तो धारा 319 का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
  2. अगर ट्रायल कोर्ट किसी आवेदन को खारिज कर चुका है, तो हाईकोर्ट को इस पर फैसला सुनाने से पहले अभियुक्तों को भी सुनवाई का मौका देना चाहिए।
  3. अगर ट्रायल कोर्ट ने एक बार फैसला दे दिया है, तो बिना किसी नए सबूत के उस फैसले को बदला नहीं जा सकता।

इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया कि न्यायपालिका को निष्पक्षता बरतनी होगी और अभियुक्तों को बिना पर्याप्त सबूत के मुकदमे में घसीटना गलत होगा।

CrPC Section 319 कब लागू होगी?

इस फैसले के आधार पर, धारा 319 को लागू करने के लिए निम्नलिखित शर्तें पूरी होनी चाहिए:

  1. मुकदमा या सुनवाई जारी होनी चाहिए।
  2. कोई नया व्यक्ति, जो पहले अभियुक्त नहीं था, अपराध में संलिप्त प्रतीत होना चाहिए।
  3. अदालत को पर्याप्त सबूत मिलने चाहिए, जो यह साबित करें कि वह व्यक्ति अपराध में लिप्त था।

अगर ये तीनों शर्तें पूरी होती हैं, तो अदालत आरोपी को मुकदमे में शामिल कर सकती है।

Also Read- Supreme Court ने बलात्कार के मामले में आरोपी को क्यों दिया लाभ? जानिए मेडिकल सबूत(Medical Evidence), विरोधी गवाह(Hostile Witness) और FIR में देरी का असर!

निष्कर्ष: न्याय की जीत

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न्यायपालिका के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है। यह सुनिश्चित करता है कि असली अपराधी बच न सके, लेकिन किसी निर्दोष को जबरदस्ती मुकदमे में न घसीटा जाए।

CrPC Section 319 अपराधियों को सजा दिलाने के लिए एक प्रभावी हथियार है, लेकिन इसका इस्तेमाल सिर्फ मजबूत सबूतों के आधार पर ही किया जाना चाहिए।

क्या आपको यह जानकारी उपयोगी लगी? नीचे कमेंट करें और अपनी राय साझा करें! 😊

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TAGGED: Criminal Law, CrPC Section 319, Supreme Court Judgement
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