परिचय: क्यों यह फैसला महत्वपूर्ण है?
एक मामला Sports Authority Of India (SAI) के कर्मचारियों के साथ हुआ, जहां उन्हें ‘इनिशियल कॉन्स्टिट्यूएंट’ का दर्जा देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंचा। 4 मार्च 2025 को Supreme Court ने इस मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जो न केवल SAI के कर्मचारियों के लिए, बल्कि भारत में सरकारी नौकरियों से जुड़े कई अन्य मामलों के लिए भी महत्वपूर्ण है। क्या आप जानते हैं कि भारत में सरकारी संस्थानों में काम करने वाले कर्मचारियों के अधिकारों को लेकर अक्सर विवाद होते रहते हैं?
यह फैसला उन सभी लोगों के लिए एक बड़ा संदेश है जो सरकारी नौकरियों में अनियमितताओं का सामना कर रहे हैं। इस ब्लॉग में हम इस मामले की पूरी कहानी, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुख्य बिंदु, और इसके भविष्य पर पड़ने वाले प्रभावों को विस्तार से समझेंगे।
मामले की पृष्ठभूमि: क्या हुआ था?
मामला: SPORTS AUTHORITY OF INDIA & ANR. Versus DR. KULBIR SINGH RANA
कोर्ट: Supreme Court Of India
तारीख: 4 मार्च 2025
स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) की स्थापना 1984 में हुई थी और यह सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 के तहत पंजीकृत है। SAI का मुख्य उद्देश्य भारत में खेलों को बढ़ावा देना है। इसके लिए SAI ने 1992 में ‘स्पोर्ट्स साइंसेज एंड स्पोर्ट्स मेडिसिन स्टाफ रिक्रूटमेंट रूल्स’ (1992 नियम) बनाए थे, जिनमें ‘इनिशियल कॉन्स्टिट्यूशन’ का प्रावधान था। इस प्रावधान के तहत, जो कर्मचारी एड-हॉक या अनियमित आधार पर काम कर रहे थे, उन्हें नियमित कर्मचारी का दर्जा दिया जा सकता था।
2022 में SAI ने नए नियम (2022 नियम) लागू किए, जिनमें भी ‘इनिशियल कॉन्स्टिट्यूशन’ का प्रावधान था। हालांकि, इन नियमों के लागू होने के बाद, SAI ने कुछ कर्मचारियों को नियमित करने के बजाय उनकी सेवाएं समाप्त कर दीं। इनमें डॉ. कुलबीर सिंह राणा और अन्य कर्मचारी शामिल थे, जो 2021 से SAI में फिजियोथेरेपिस्ट के रूप में काम कर रहे थे।
इसके बाद, इन कर्मचारियों ने सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (CAT) में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने SAI के फैसले को चुनौती दी। CAT ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया और SAI को निर्देश दिया कि वे इन कर्मचारियों को ‘इनिशियल कॉन्स्टिट्यूएंट’ का दर्जा दें। हालांकि, SAI ने इस फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन हाई कोर्ट ने भी CAT के फैसले को बरकरार रखा।
Also Read- POCSO Act vs IPC: Supreme Court का बड़ा फैसला, किस कानून के तहत मिलेगी सख्त सजा?
SAI द्वारा कोर्ट में दिए गए बयान को लेकर हाईकोर्ट की टिप्पणी:
“It is not denied by the counsel appearing for S A I that the statement made by the counsel seeking time to comply with the order of the Tribunal was made without the instructions from S A I and neither did SAI file an affidavit stating that they have not instructed their counsel to make such a statement.”
(अनुवाद: S A I की ओर से उपस्थित वकील द्वारा इस तथ्य से इनकार नहीं किया गया कि ट्रिब्यूनल के आदेश का पालन करने के लिए समय मांगने वाला बयान बिना S A I के निर्देश के दिया गया था, और S A I ने यह कहने के लिए कोई हलफनामा भी दायर नहीं किया कि उन्होंने अपने वकील को ऐसा बयान देने का निर्देश नहीं दिया था।)
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: मुख्य बिंदु
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में SAI की अपील को खारिज कर दिया और CAT के फैसले को बरकरार रखा। कोर्ट ने अपने फैसले में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला:
- ‘इनिशियल कॉन्स्टिट्यूएंट’ का दर्जा:
- कोर्ट ने कहा कि 1992 और 2022 के नियमों में ‘इनिशियल कॉन्स्टिट्यूशन’ का प्रावधान है, जिसके तहत एड-हॉक कर्मचारियों को नियमित कर्मचारी का दर्जा दिया जा सकता है।
- डॉ. कुलबीर सिंह राणा और अन्य कर्मचारियों का चयन सही प्रक्रिया के तहत हुआ था, इसलिए उन्हें ‘इनिशियल कॉन्स्टिट्यूएंट’ का दर्जा दिया जाना चाहिए।
- कर्मचारियों के अधिकार:
- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक बार किसी कर्मचारी को ‘इनिशियल कॉन्स्टिट्यूएंट’ का दर्जा मिल जाए, तो उसे अनुबंध आधारित कर्मचारी नहीं माना जा सकता।
- यह दर्जा उन्हें SAI के नियमित कर्मचारियों के समान अधिकार देता है।
- SAI की गलतियां:
- कोर्ट ने SAI की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने कर्मचारियों के अधिकारों को नजरअंदाज किया और उनकी सेवाएं समाप्त कर दीं।
- SAI ने CAT के फैसले को चुनौती देने के बजाय उसे मान लेना चाहिए था।
Click Here to Read Full Order
1. सुप्रीम कोर्ट का SAI की याचिका खारिज करने पर बयान:
“This petition ought to be dismissed on the mere ground that once the order has been passed on a kind of a compromise or concession given by a party, that party cannot turn back and challenge the order before a higher court, unless it is a case of fraud or deception. On principle as well as on law, this is not permissible.”
(अनुवाद: यह याचिका केवल इस आधार पर खारिज की जानी चाहिए कि जब एक पक्ष द्वारा समझौते या रियायत के आधार पर आदेश पारित किया जा चुका है, तो वह पक्ष किसी उच्च न्यायालय में उस आदेश को चुनौती नहीं दे सकता, जब तक कि यह धोखाधड़ी या छल का मामला न हो। सैद्धांतिक और कानूनी दोनों आधारों पर, यह स्वीकार्य नहीं है।)
2. “Initial Constitution” पर न्यायालय की टिप्पणी:
“For all practical purposes, once an employee is considered as an ‘initial constituent’ of SAI, it would mean that he is no longer to be treated as a contractual employee but as a regular employee, who comes under direct enrolment/control of SAI.”
(अनुवाद: व्यवहारिक दृष्टि से, एक बार जब किसी कर्मचारी को S A I का ‘प्रारंभिक सदस्य’ माना जाता है, तो इसका अर्थ यह होगा कि उसे संविदा कर्मचारी के रूप में नहीं, बल्कि नियमित कर्मचारी के रूप में गिना जाएगा, जो SAI के प्रत्यक्ष नियंत्रण में आता है।)
Also Read- CrPC Section 319: अपराध में शामिल नए अभियुक्तों को मुकदमे में जोड़ने की शक्ति
फैसले का प्रभाव: भविष्य के लिए क्या मायने हैं?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के कई व्यापक प्रभाव हैं:
- सरकारी नौकरियों में अनियमितताओं पर रोक:
- यह फैसला सरकारी संस्थानों के लिए एक चेतावनी है कि वे कर्मचारियों के अधिकारों को गंभीरता से लें।
- भविष्य में ऐसे मामलों में कर्मचारियों को न्याय मिलने की संभावना बढ़ गई है।
- कर्मचारियों के अधिकारों की सुरक्षा:
- इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि एड-हॉक या अनुबंध आधारित कर्मचारियों को भी नियमित कर्मचारी का दर्जा मिल सकता है।
- यह फैसला अन्य सरकारी संस्थानों में काम कर रहे कर्मचारियों के लिए भी एक मिसाल बनेगा।
- कानूनी प्रक्रिया में सुधार:
- इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर कोई पक्ष किसी फैसले पर सहमत हो जाता है, तो वह बाद में उसे चुनौती नहीं दे सकता।
- यह कानूनी प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ावा देगा।
निष्कर्ष: क्या यह फैसला न्याय की जीत है?
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल डॉ. कुलबीर सिंह राणा और अन्य कर्मचारियों के लिए, बल्कि पूरे देश के सरकारी कर्मचारियों के लिए एक बड़ी जीत है। यह फैसला साबित करता है कि कानून के सामने सभी बराबर हैं और अनियमितताओं को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
क्या आपको लगता है कि यह फैसला सरकारी नौकरियों में बदलाव लाएगा? अपने विचार कमेंट में शेयर करें!
नोट: यह ब्लॉग केवल सूचना के उद्देश्य से है। किसी विशेष मामले में कानूनी सलाह के लिए कृपया किसी योग्य वकील से परामर्श करें।