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Indian Law Query > Supreme Court > दहेज हत्या केस(Dowry Death Case) में जमानत रद्द, जानिए Supreme Court का यह फैसला क्यों है हर महिला के लिए मील का पत्थर!
Supreme Court

दहेज हत्या केस(Dowry Death Case) में जमानत रद्द, जानिए Supreme Court का यह फैसला क्यों है हर महिला के लिए मील का पत्थर!

JagDeep Singh
Last updated: 2025/03/15 at 3:57 PM
JagDeep Singh
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10 Min Read
Dowry Death Case Dowry Prohibition Act
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परिचय (Introduction)

दहेज (Dowry) की मांग और उसके कारण होने वाली मौतें(dowry death case) भारतीय समाज के लिए एक गंभीर समस्या बनी हुई हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे मामले में अपना फैसला सुनाया है, जो न केवल dowry death case के मामलों में न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत करता है, बल्कि इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि कैसे अदालतें ऐसे संवेदनशील मामलों में bail देने के निर्णय लेते समय अधिक सतर्कता बरत सकती हैं। यह फैसला Section 304B IPC और Section 498A IPC के तहत दर्ज मामलों में न्यायिक प्रक्रिया को और स्पष्ट करता है, जो दहेज से जुड़े अपराधों को रोकने के लिए बनाए गए हैं। साथ ही, Dowry Prohibition Act के तहत दहेज की मांग और देनदारी को अपराध माना गया है, और इस फैसले ने इन कानूनों के प्रभावी पालन पर भी जोर दिया है।

Contents
परिचय (Introduction)क्यों मायने रखता है यह फैसला?केस की पृष्ठभूमि: क्या हुआ था मामले में?Also Read- DGP को जांच का आदेश, पुलिस अफसर और महिला वकीलों पर ‘False Rape Cases’ सिंडिकेट चलाने का सनसनीखेज आरोप!सुप्रीम कोर्ट का फैसला: क्या कहा गया?Click Here to Read Full Orderफैसले का प्रभावAlso Read- क्या मरते वक्त दिया गया बयान (Dying Declaration) ही सजा के लिए काफी है? Supreme Court का अहम फैसला!निष्कर्ष Also Read- CrPC Section 319: अपराध में शामिल नए अभियुक्तों को मुकदमे में जोड़ने की शक्ति

क्यों मायने रखता है यह फैसला?

यह फैसला केवल एक मामले तक सीमित नहीं है, बल्कि यह dowry death case के मामलों में न्यायिक प्रक्रिया को और मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह फैसला वकीलों, न्यायिक अधिकारियों, और आम जनता के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दिखाता है कि कैसे गंभीर अपराधों में bail देने के निर्णय लेते समय अदालतों को अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए। Section 304B IPC और Section 498A IPC के तहत दर्ज मामलों में, जहां महिलाओं की मौत दहेज की मांग और क्रूरता के कारण होती है, वहां न्यायिक प्रक्रिया को और सख्त बनाने की जरूरत है। इस फैसले ने यह भी स्पष्ट किया है कि Dowry Prohibition Act के तहत दहेज की मांग करने वालों को किसी भी सूरत में छूट नहीं दी जानी चाहिए।

इस फैसले के माध्यम से, सुप्रीम कोर्ट ने यह संदेश दिया है कि दहेज से जुड़े अपराधों को गंभीरता से लिया जाएगा और ऐसे मामलों में bail देने के निर्णय लेते समय अदालतों को मामले की गंभीरता और सामाजिक प्रभाव को ध्यान में रखना चाहिए। यह फैसला न केवल कानूनी पेशेवरों के लिए, बल्कि आम जनता के लिए भी एक सबक है कि दहेज की मांग और महिलाओं के प्रति क्रूरता जैसे अपराधों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।


केस की पृष्ठभूमि: क्या हुआ था मामले में?

केस का नाम: Shabeen Ahmad vs The State of Uttar Pradesh & Anr.
अदालत: Supreme Court of India
निर्णय की तारीख: 3 मार्च 2025

कहानी की शुरुआत:
शाहिदा बानो की शादी 7 फरवरी 2022 को समी खान (आरोपी नंबर 1) से हुई थी। शादी के कुछ ही समय बाद, शाहिदा के ससुराल वालों ने दहेज की मांग शुरू कर दी। पहले उन्होंने एक “बुलेट” मोटरसाइकिल की मांग की, जिसे शाहिदा के भाई ने उसके नाम पर खरीदकर दिया। लेकिन मांगें यहीं नहीं रुकीं। कुछ समय बाद, उन्होंने एक कार की मांग की, जिसे शाहिदा का परिवार आर्थिक तंगी के कारण पूरा नहीं कर सका।

दुखद घटना:
22 जनवरी 2024 को शाहिदा के पिता को उसके ससुर (आरोपी नंबर 2) का फोन आया कि वे तुरंत आएं। जब शाहिदा का परिवार वहां पहुंचा, तो उन्होंने शाहिदा का शव देखा, जिसकी गर्दन में दुपट्टा लिपटा हुआ था और वह पंखे से लटकी हुई थी। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर फोटोग्राफी की और जनरल डायरी में घटना दर्ज की।

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट:
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में शाहिदा के शरीर पर कई चोटों के निशान पाए गए, जिसमें सिर और गर्दन पर चोट के निशान और गर्दन पर एक स्पष्ट रस्सी का निशान था। मृत्यु का कारण “Ante-Mortem Strangulation(मृत्यु से पहले गला घोंटना)” बताया गया, जो आत्महत्या की बजाय जबरदस्ती की गई हत्या की ओर इशारा करता है।


Also Read- DGP को जांच का आदेश, पुलिस अफसर और महिला वकीलों पर ‘False Rape Cases’ सिंडिकेट चलाने का सनसनीखेज आरोप!


सुप्रीम कोर्ट का फैसला: क्या कहा गया?

मुख्य मुद्दे:

  1. क्या हाई कोर्ट ने आरोपियों को बेल देते समय पर्याप्त सावधानी बरती?
  2. क्या दहेज हत्या(dowry death case) के मामलों में बेल देने के निर्णय लेते समय अदालतों को अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए?

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां:

  1. दहेज हत्या की गंभीरता:
    • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दहेज हत्या (IPC की धारा 304B) एक गंभीर अपराध है, जो न केवल पीड़ित के परिवार को प्रभावित करता है, बल्कि समाज के लिए भी एक गंभीर चुनौती है।
    • अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में बेल देने के निर्णय लेते समय अदालतों को अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए।
  2. आरोपियों की भूमिका:
    • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी नंबर 2 (ससुर) और आरोपी नंबर 3 (सास) का दहेज की मांग और शाहिदा के साथ क्रूरता में प्रमुख योगदान था।
    • अदालत ने यह भी कहा कि शाहिदा के शरीर पर पाए गए चोट के निशान और लिगेचर मार्क यह साबित करते हैं कि यह एक साधारण आत्महत्या नहीं, बल्कि एक हत्या थी।
  3. बेल रद्द करने का निर्णय:
    • सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी नंबर 2 और आरोपी नंबर 3 की बेल रद्द कर दी और उन्हें तुरंत सरेंडर करने का आदेश दिया।
    • हालांकि, आरोपी नंबर 4 (साली) और आरोपी नंबर 5 (साली) की बेल को बरकरार रखा गया, क्योंकि उनकी भूमिका अपेक्षाकृत कम थी और उनके व्यक्तिगत और शैक्षणिक परिस्थितियों को ध्यान में रखा गया।

Click Here to Read Full Order


Judge’s Exact Statement:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “In dowry-death cases, courts must be mindful of the broader societal impact, given that the offence strikes at the very root of social justice and equality. Allowing alleged prime perpetrators of such heinous acts to remain on bail, where the evidence indicates they actively inflicted physical, as well as mental, torment, could undermine not only the fairness of the trial but also public confidence in the criminal justice system.

जज का सटीक बयान:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “दहेज हत्या के मामलों में, अदालतों को व्यापक सामाजिक प्रभाव को ध्यान में रखना चाहिए, क्योंकि यह अपराध सामाजिक न्याय और समानता की जड़ों पर प्रहार करता है। ऐसे जघन्य अपराधों के आरोपियों को जमानत पर छोड़ना, जब सबूत यह दर्शाते हों कि उन्होंने शारीरिक और मानसिक यातना दी है, न केवल मुकदमे की निष्पक्षता को खतरे में डाल सकता है, बल्कि आपराधिक न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास को भी कमजोर कर सकता है।”


फैसले का प्रभाव

  1. न्यायिक प्रक्रिया में सतर्कता:
    • यह फैसला दिखाता है कि गंभीर अपराधों, विशेषकर दहेज हत्या(dowry-death cases) के मामलों में, अदालतों को बेल देने के निर्णय लेते समय अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए।
    • अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बेल देने के निर्णय लेते समय सभी प्रासंगिक तथ्यों और सबूतों को ध्यान में रखा जाए।
  2. समाज पर प्रभाव:
    • यह फैसला समाज को यह संदेश देता है कि दहेज हत्या जैसे गंभीर अपराधों को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा और ऐसे मामलों में न्यायिक प्रक्रिया को और मजबूत किया जाएगा।
    • यह फैसला दहेज हत्या के मामलों(dowry-death cases) में पीड़ितों के परिवारों को न्याय दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
  3. वकीलों और न्यायिक अधिकारियों के लिए सीख:
    • वकीलों और न्यायिक अधिकारियों को ऐसे मामलों में बेल देने के निर्णय लेते समय अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए और सभी प्रासंगिक तथ्यों और सबूतों को ध्यान में रखना चाहिए।
    • यह फैसला यह भी दिखाता है कि अदालतों को ऐसे मामलों में बेल देने के निर्णय लेते समय समाज पर पड़ने वाले प्रभाव को भी ध्यान में रखना चाहिए।

Also Read- क्या मरते वक्त दिया गया बयान (Dying Declaration) ही सजा के लिए काफी है? Supreme Court का अहम फैसला!


निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला दहेज हत्या(dowry-death cases) के मामलों में न्यायिक प्रक्रिया को और मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह फैसला न केवल पीड़ितों के परिवारों को न्याय दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह समाज को यह संदेश भी देता है कि दहेज हत्या जैसे गंभीर अपराधों को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा।

आपकी राय क्या है?
क्या आपको लगता है कि यह फैसला दहेज हत्या के मामलों में न्यायिक प्रक्रिया को और मजबूत करेगा? अपने विचार कमेंट में साझा करें!

कानूनी सलाह:
यदि आप या आपका कोई परिचित किसी कानूनी समस्या का सामना कर रहा है, तो कृपया एक योग्य वकील से परामर्श करें।


Also Read- CrPC Section 319: अपराध में शामिल नए अभियुक्तों को मुकदमे में जोड़ने की शक्ति


TAGGED: Dowry, Dowry Death Cases, Dowry Prohibition Act, Section 304B IPC, Section 498A IPC, Shabeen Ahmad vs The State of Uttar Pradesh & Anr.
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