परिचय
सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने हाल ही में एक ऐसे मामले में अहम फैसला सुनाया है, जिसमें Greater Noida Industrial Development Authority (GNIDA) की भूमिका पर सवाल उठाए गए थे। यह मामला उन होम बायर्स (home buyers) से जुड़ा है, जो वर्षों से अपने सपनों का घर पाने की उम्मीद में संघर्ष कर रहे थे। इस फैसले से रियल एस्टेट कानून (real estate law) और प्रॉपर्टी निवेश (property investment) से जुड़े लोगों को बड़ा सबक मिला है। अगर आपने कभी घर खरीदा है या खरीदने का विचार कर रहे हैं, तो यह खबर आपके लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
क्या आप भी बिल्डरों के झांसे में आकर अपना घर खो चुके हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में बिल्डरों और अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की है।
यह केस उन हज़ारों घर खरीदारों के लिए एक उम्मीद की किरण है, जो बिल्डरों के गायब होने या प्रोजेक्ट को अधूरा छोड़ देने के कारण अपने सपनों के घर से महरूम हो चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जो न केवल घर खरीदारों के अधिकारों को मजबूत करता है, बल्कि अधिकारियों और बिल्डरों की जवाबदेही भी तय करता है। आइए, इस पूरे केस को विस्तार से समझते हैं।
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मामले की पृष्ठभूमि
केस नाम: Ravi Prakash Srivastava & Others vs. The State of Uttar Pradesh & Others
न्यायालय: सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
जज: Hon’ble Justice Vikram Nath और Justice Sandeep Mehta
तारीख: 18 मार्च 2025
यह केस Greater Noida Industrial Development Authority (GNIDA) और एक बिल्डर के बीच हुए विवाद से जुड़ा है। बिल्डर ने एक रियल एस्टेट प्रोजेक्ट शुरू किया था, जिसमें कई घर खरीदारों ने अपने सपनों का घर खरीदने के लिए पैसे लगाए थे।मामला उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद (UP Awas Vikas Parishad) के तहत एक अटके हुए प्रोजेक्ट से जुड़ा है, जहां होम बायर्स को बिल्डर द्वारा धोखा दिया गया था। वर्षों पहले शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट बीच में ही अधूरा छोड़ दिया गया, और बिल्डर गायब हो गया। अब 40 होम बायर्स मिलकर इस प्रोजेक्ट को पूरा करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन GNIDA से कोई सहयोग नहीं मिल रहा था।
मुख्य कानूनी मुद्दे
- क्या अथॉरिटी को अटके हुए प्रोजेक्ट के पुनरुद्धार में मदद करनी चाहिए?
- होम बायर्स का कानूनी अधिकार क्या है जब बिल्डर भाग जाए?
- क्या होम बायर्स से अतिरिक्त शुल्क लेना उचित है?
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सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने GNIDA को सख्त फटकार लगाते हुए कहा कि अथॉरिटी का यह दायित्व बनता है कि वह होम बायर्स के हितों की रक्षा करे और प्रोजेक्ट को पुनर्जीवित करने में मदद करे। कोर्ट ने यह आदेश दिए:
- GNIDA को एक सप्ताह में विस्तृत रिपोर्ट देनी होगी कि यदि मूल बिल्डर प्रोजेक्ट पूरा करता, तो वह किन शुल्कों का भुगतान करता।
- 40 होम बायर्स को उनके अपार्टमेंट पूरे करने की अनुमति दी जाए और उन्हें केवल उचित एवं आनुपातिक शुल्क ही लिया जाए।
- GNIDA की अनदेखी को अनुचित ठहराया गया और कहा गया कि अथॉरिटी को बायर्स के साथ सहयोग करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अपने फैसले में निम्नलिखित बातें कहीं:
- ग्रेटर नोएडा इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (GNIDA) की भूमिका पर:
- “हम इस तथ्य से खुश नहीं हैं कि ग्रेटर नोएडा इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (जिसे ‘अथॉरिटी’ कहा जाएगा) एक मृत प्रोजेक्ट को पुनर्जीवित करने के पूरे प्रयास में सहयोग नहीं कर रही है, जहां घर खरीदारों को बिल्डर द्वारा धोखा दिया गया है, जो दशकों पहले गायब हो गया था।”
- घर खरीदारों के प्रयासों पर:
- “40 घर खरीदार, जो एक टावर को पूरा करने के लिए एक साथ आए हैं, जिसमें चार-बेडरूम के 40 अपार्टमेंट हैं, लगातार अथॉरिटी से संपर्क कर रहे हैं और उनसे विवरण और समाधान मांग रहे हैं ताकि वे अपने अपार्टमेंट के मालिक बनने की अपनी आकांक्षा को आगे बढ़ा सकें।”
- GNIDA के सहयोग न करने पर:
- “इसके अलावा, वे अथॉरिटी को देय अपने अनुपातिक शुल्क का भुगतान करने के लिए तैयार हैं, लेकिन इसके बावजूद अथॉरिटी मांग/समाधान का विवरण प्रदान नहीं कर रही है और न ही वह 40 अपार्टमेंट वाले एक टावर को पूरा करने के उनके संयुक्त प्रयास में सहयोग कर रही है।”
- GNIDA की जिम्मेदारी पर:
- “आज, अथॉरिटी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्री रविंद्र कुमार ने एक सप्ताह का समय मांगा है ताकि वह उस मांग का विवरण प्रदान कर सकें, जो अथॉरिटी ने मूल बिल्डरों द्वारा प्रोजेक्ट पूरा करने की स्थिति में उठाई होती, ताकि प्रत्येक घर खरीदार के अनुपातिक शुल्क का निर्धारण किया जा सके, जो उनके द्वारा लिए जा रहे अपार्टमेंट के आकार पर निर्भर करेगा।”
- कोर्ट का निर्देश:
- “अथॉरिटी के एक सक्षम अधिकारी द्वारा एक सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दायर किया जाए। मामले को 25 मार्च, 2025 को फिर से सूचीबद्ध किया जाए।”
- आवेदकों की जांच पर:
- “इस बीच, I.A. नंबर 56220/2025 10 आवेदकों द्वारा दायर किया गया है। इसकी एक प्रति श्री अभिषेक कुमार सिंह, AOR को प्रदान की जाए, जो उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद के आवास आयुक्त, प्रतिवादी संख्या 5 का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जो यह सत्यापित करेंगे कि क्या इस आवेदन में शामिल 10 आवेदक वास्तविक हैं और उनके द्वारा किए गए भुगतान के दावों को समर्थित दस्तावेजों के साथ जांचेंगे। इस सत्यापन के लिए चार सप्ताह का समय दिया जाता है।”
English Translation:
- On the Greater Noida Industrial Development Authority’s (GNIDA) Role:
- “We are not happy with the fact that the Greater Noida Industrial Development Authority (hereafter referred to as ‘Authority’) is not cooperating in the entire exercise of reviving a dead project where the homebuyers have been cheated by the builder who has vanished decades ago.”
- On Homebuyers’ Efforts:
- “The 40 homebuyers who have joined together to complete one Tower containing 40 apartments of four-bedroom each have been continuously in touch with the Authority requesting them to provide the details and also to find out solutions as to how they can go ahead with their aspirations of owning their apartments.”
- On GNIDA’s Lack of Cooperation:
- “Further, they are more than willing to pay their proportionate share of the charges due to the Authority but despite the same, the Authority is not coming up with the details of the demand/solutions nor is it cooperating in and allowing them to continue with their joint venture of completing one Tower of 40 apartments.”
- On GNIDA’s Responsibility:
- “Today, Mr. Ravindra Kumar, learned senior counsel appearing for the Authority, has prayed for a week’s time to provide the details of the demand which the Authority would have raised in case the original builders had completed the project so that the proportional charges of each of the homebuyers can be decided depending upon the size of the apartments they are taking.”
- Court’s Directive:
- “Let an affidavit be filed by the competent officer of the Authority within a week. List the matter again on 25th March, 2025.”
- On Verification of Applicants:
- “In the meantime, I.A. No. 56220 of 2025 has been filed by 10 applicants. Copy of the same be provided to Mr. Abhishek Kumar Singh, AOR representing Respondent no. 5-Housing Commissioner, UP Awas Vikas Parishad, who will verify as to whether these 10 applicants in the said application are genuine or not and also about the payments made by them as claimed in the application by supporting documents. For the said verification, four weeks’ time is granted.”
न्यायालय के इन शब्दों से स्पष्ट है कि
सुप्रीम कोर्ट GNIDA के सहयोग न करने से नाखुश था और उसने घर खरीदारों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि GNIDA को घर खरीदारों को स्पष्टता और सहयोग प्रदान करना चाहिए, जो अपने प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए स्वयं प्रयास कर रहे हैं।
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इस फैसले का असर
✅ होम बायर्स को राहत: अब उन लोगों को राहत मिलेगी, जिनकी मेहनत की कमाई एक अधूरे प्रोजेक्ट में फंसी हुई थी।
✅ रियल एस्टेट सेक्टर में सुधार: बिल्डर्स और अथॉरिटीज अब मनमानी नहीं कर पाएंगे।
✅ निवेशकों के लिए बड़ी सीख: प्रॉपर्टी खरीदने से पहले लीगल ड्यू डिलिजेंस (legal due diligence) ज़रूरी है।
क्या करें अगर आप भी ऐसे मामले में फंसे हैं?
- RTI और कानूनी सलाह लें – अथॉरिटी से सभी आवश्यक दस्तावेज मांगें।
- कोर्ट में PIL दाखिल करें – यदि आपको उचित न्याय नहीं मिल रहा है, तो अदालत का रुख करें।
- RERA में शिकायत दर्ज कराएं – यदि मामला बिल्डर के खिलाफ है, तो RERA एक्ट के तहत शिकायत करें।
निष्कर्ष
यह फैसला भारत के होम बायर्स के लिए एक बड़ा जीत है। सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि कोई भी अथॉरिटी नागरिकों के साथ अन्याय नहीं कर सकती। अब वक्त आ गया है कि रियल एस्टेट सेक्टर पारदर्शी बने और खरीदारों के अधिकारों की रक्षा की जाए।
💬 आपकी राय क्या है? क्या आपको भी रियल एस्टेट में किसी परेशानी का सामना करना पड़ा है? हमें कमेंट में बताएं!