सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 18 फरवरी को आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, ओडिशा, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, असम और केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, लक्षद्वीप पर 5,000 रुपये का जुर्माना (Penalty) लगाया। यह जुर्माना घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा कानून, 2005 (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005 – PWDVA) के प्रभावी क्रियान्वयन पर स्थिति रिपोर्ट (Status Report) दाखिल न करने के कारण लगाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अब प्रत्येक राज्य को सुप्रीम कोर्ट मेडिएशन सेंटर (Supreme Court Mediation Centre) में भुगतान जमा करने के साथ 2 सप्ताह का अतिरिक्त समय दिया है।
पिछले साल 2 दिसंबर को, जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और एन.के. सिंह (Justices B.V. Nagarathna and NK Singh) की पीठ ने PWDVA (Protection of Women from Domestic Violence Act) के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए आदेश पारित किया था। यह आदेश वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता (Senior Advocate Shobha Gupta) द्वारा अदालत को सूचित किए जाने के बाद दिया गया था कि उन्होंने अदालत के पिछले आदेश के जवाब में सुझाव दाखिल किए हैं।
यह आदेश ‘वी द वीमेन ऑफ इंडिया’ (We The Women of India) नामक गैर-सरकारी संगठन द्वारा दायर एक जनहित याचिका (PIL) पर पारित किया गया।
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याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत सुझाव निम्नलिखित हैं:
- प्रत्येक जिले की जनसंख्या और घरेलू हिंसा (domestic violence) से संबंधित शिकायतों/जांचों की औसत संख्या के आधार पर, राज्य सरकार/केंद्र शासित प्रदेश (State Government/UT) द्वारा आवश्यक संख्या में स्वतंत्र प्रभार वाले संरक्षण अधिकारी (protection officers) नियुक्त किए जाएं (धारा 8 के अनुसार प्रत्येक जिले में कम से कम एक अनिवार्य)।
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- संरक्षण अधिकारियों (protection officers) को घरेलू हिंसा (domestic violence) संबंधी शिकायतों/जांचों से जुड़े विभिन्न कानूनी पहलुओं पर नियमित रूप से जागरूकता प्रशिक्षण (awareness training) दिया जाए। इसके अलावा, उन्हें पीड़ित महिलाओं (aggrieved women) की सहायता के लिए संवेदनशील बनाया जाए।
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- राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (States/UT) को पीड़ित महिलाओं (aggrieved women) की सहायता के लिए पर्याप्त संख्या में आश्रय गृह (shelter homes) और चिकित्सा सुविधाएं (medical facilities) उपलब्ध करानी चाहिए (धारा 6 और 7)। ‘मिशन शक्ति परियोजना’ (Mission Shakti Project) के तहत स्थापित ‘वन स्टॉप सेंटर’ (One Stop Centers) को इस अधिनियम (Act) के तहत आश्रय प्रदान करने के लिए जोड़ा जा सकता है, लेकिन केवल 3/5 दिनों तक रहने की सीमा समाप्त की जानी चाहिए।
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- जिला और राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों (District and State Legal Service Authorities) के वकीलों का एक पैनल (panel of lawyers) नि:शुल्क कानूनी सहायता (free legal aid) प्रदान करने के लिए प्रत्येक संरक्षण अधिकारी (protection officer), संबंधित मजिस्ट्रेट कोर्ट (Magistrate Court) और पुलिस स्टेशन (Police Station) के साथ उपलब्ध कराया जाए।
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- केंद्र सरकार ने लगभग हर शपथ पत्र में ‘मिशन शक्ति’ (Mission Shakti) और ‘वन स्टॉप सेंटर’ (One Stop Centers) का उल्लेख किया है, लेकिन यह घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम (DVA) के तहत आवश्यक सुरक्षा तंत्र (Assistance Network) का विकल्प नहीं हो सकता। अतः ‘राष्ट्रीय पोर्टल’ (National Portal) बनाया जाए, जिसमें पूरे सहायता नेटवर्क (Assistance Network) का विवरण, पते और संपर्क जानकारी हो।
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- पूरे सहायता नेटवर्क (Assistance Network) की कार्यात्मक स्थिति की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए।
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- प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश (State/UT) के लिए एक केंद्रीकृत कोष आवंटन योजना (centralized scheme of allocation of funds) होनी चाहिए, जो अधिनियम (Act) के प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करने, जागरूकता प्रशिक्षण (awareness training) और हितधारकों (stakeholders) को संवेदनशील बनाने के लिए समर्पित हो।
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- सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (States/UTs) को भर्ती नियम (Recruitment Rules) तैयार करने, संरक्षण अधिकारियों (protection officers) के लिए एक अलग कैडर संरचना (cadre structure) बनाने और उन्हें पर्याप्त कार्यालय सहायता (office assistance) प्रदान करने का निर्देश दिया जाए।
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- सहायता नेटवर्क (Assistance Network) के सभी हितधारकों जैसे संरक्षण अधिकारी (protection officers), सेवा प्रदाता (service providers), आश्रय गृह (shelter homes) और चिकित्सा सुविधाएं (medical facilities) की सूची प्रत्येक पुलिस स्टेशन (police station), क्षेत्रीय सामुदायिक केंद्रों (community centers), स्थानीय निकायों (local bodies), ग्राम पंचायत (gram panchayat) और ब्लॉक स्तर के कार्यालयों में उपलब्ध कराई जाए।
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- महिलाओं की हेल्पलाइन (Women Helpline 181) या 100 नंबर पर की गई संकट कॉल (distress calls) और शिकायतों के बारे में कोई विस्तृत डेटा उपलब्ध नहीं है। इसी तरह, घरेलू हिंसा अधिनियम (DVA) के तहत दर्ज शिकायतों या अदालतों में लंबित मामलों पर भी कोई व्यापक अध्ययन नहीं हुआ है। केंद्र सरकार को प्रत्येक जिले में आवश्यक न्यूनतम संरक्षण अधिकारियों (protection officers), आश्रय गृह (shelter homes) और चिकित्सा सुविधाओं (medical facilities) की जरूरतों को समझने के लिए एक व्यापक अध्ययन (empirical study) कराना चाहिए।
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- घरेलू हिंसा अधिनियम (DVA) के मामलों, विशेष रूप से अंतरिम भरण-पोषण आदेश (interim maintenance orders) के निर्णय में होने वाली देरी चिंता का विषय है। इन मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए समयबद्ध निर्देश (time-bound disposal) दिए जाने चाहिए।
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FAQs on Domestic Violence Protection and Assistance in India
1. घरेलू हिंसा के मामलों में संरक्षण अधिकारी (Protection Officer) की भूमिका क्या होती है?
उत्तर: संरक्षण अधिकारी (Protection Officer) घरेलू हिंसा अधिनियम (DVA) के तहत पीड़ित महिलाओं (aggrieved women) की सहायता करते हैं। वे शिकायत दर्ज करने, अदालत में आवेदन प्रस्तुत करने, आश्रय गृह (shelter home) या चिकित्सा सुविधा (medical facilities) तक पहुंच दिलाने और कानूनी सहायता (legal aid) प्रदान करने की व्यवस्था करते हैं।
2. घरेलू हिंसा की शिकायत कहां दर्ज की जा सकती है?
उत्तर: घरेलू हिंसा (domestic violence) की शिकायत स्थानीय पुलिस स्टेशन (Police Station), महिला हेल्पलाइन (Women Helpline 181), संरक्षण अधिकारी (Protection Officer) या वन स्टॉप सेंटर (One Stop Center) में दर्ज कराई जा सकती है। इसके अलावा, राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women) और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (District Legal Service Authority) भी सहायता प्रदान करते हैं।
3. ‘वन स्टॉप सेंटर’ (One Stop Center) क्या है और यह कैसे मदद करता है?
उत्तर: ‘वन स्टॉप सेंटर’ (One Stop Center) मिशन शक्ति (Mission Shakti) के तहत संचालित एक सरकारी पहल है, जो घरेलू हिंसा पीड़ित महिलाओं (aggrieved women) को एक ही स्थान पर पुलिस सहायता, चिकित्सा सहायता (medical facilities), परामर्श (counseling) और कानूनी सहायता (legal aid) प्रदान करता है। हालांकि, वर्तमान में वहां रहने की अवधि 3-5 दिनों तक सीमित है।
4. घरेलू हिंसा मामलों का समाधान कितने समय में किया जाता है?
उत्तर: घरेलू हिंसा अधिनियम (DVA) के तहत मामलों का समाधान समयबद्ध (time-bound disposal) तरीके से किया जाना चाहिए। विशेष रूप से, अंतरिम भरण-पोषण आदेश (interim maintenance orders) जल्द से जल्द पारित किए जाने चाहिए। हालांकि, व्यावहारिक रूप से, न्यायालयों में मामलों के निपटारे में देरी हो सकती है, इसलिए समय-समय पर समीक्षा आवश्यक है।