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Indian Law Query > Supreme Court > बाल यौन शोषण(Child Sexual Abuse) के मामले में न्याय की 40 साल लंबी प्रतीक्षा का अंत: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
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बाल यौन शोषण(Child Sexual Abuse) के मामले में न्याय की 40 साल लंबी प्रतीक्षा का अंत: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

JagDeep Singh
Last updated: 2025/03/20 at 3:55 PM
JagDeep Singh
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9 Min Read
child sexual abuse
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परिचय:

क्या आप जानते हैं कि एक बाल यौन शोषण(Child Sexual Abuse) के मामले में न्याय पाने के लिए पीड़िता को 40 साल तक इंतजार करना पड़ा? 1986 में राजस्थान में एक नाबालिग लड़की के साथ हुए जघन्य अपराध ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया था। लेकिन इस मामले में न्याय पाने में पीड़िता को 40 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा। हाल ही में, Supreme Court of India ने 18 मार्च 2025 को इस मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें Rajasthan High Court द्वारा आरोपी को बरी किए जाने के फैसले को पलटते हुए, उसे दोषी ठहराया। यह सिर्फ एक कहानी नहीं है, बल्कि भारतीय न्यायिक प्रणाली की एक ऐसी वास्तविकता है जो हमें सोचने पर मजबूर करती है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जो न सिर्फ पीड़िता को न्याय दिलाता है, बल्कि भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक मिसाल भी कायम करता है।

Contents
परिचय:Also Read- POCSO Act vs IPC: Supreme Court का बड़ा फैसला, किस कानून के तहत मिलेगी सख्त सजा?केस की पृष्ठभूमि: 40 साल पुराना मामलाAlso Read- DGP को जांच का आदेश, पुलिस अफसर और महिला वकीलों पर ‘False Rape Cases’ सिंडिकेट चलाने का सनसनीखेज आरोप!सुप्रीम कोर्ट का फैसला: न्याय की जीतजजों द्वारा कही गई सटीक टिप्पणी: Click Here to Read Full Judgementफैसले का प्रभाव और व्यावहारिक निहितार्थनिष्कर्ष: न्याय की लंबी प्रतीक्षा का अंतAlso Read- Supreme Court ने बलात्कार के मामले में आरोपी को क्यों दिया लाभ? जानिए मेडिकल सबूत(Medical Evidence), विरोधी गवाह(Hostile Witness) और FIR में देरी का असर!

क्यों मायने रखता है यह केस?
हमारे समाज में कुछ लोग, जो समाज में अपनी इज्जत के डर से अपने या घर में किसी के साथ हुए ऐसे बाल यौन शोषण(Child Sexual Abuse) को छुपाते हैं, यह उनके लिए भी एक सबक होगा कि अन्याय के खिलाफ लड़ना चाहिए, न कि उसे दबाना चाहिए। यह मामला सिर्फ एक बच्ची की कहानी नहीं है, बल्कि यह हमारे न्यायिक तंत्र की गति और बाल यौन शोषण(Child Sexual Abuse) के मामलों में सबूतों के महत्व को उजागर करता है। यह केस वकीलों, न्यायाधीशों, और आम जनता के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बताता है कि कैसे एक पुराने मामले में भी न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है।


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केस की पृष्ठभूमि: 40 साल पुराना मामला

केस का नाम: STATE OF RAJASTHAN VERSUS CHATRA
कोर्ट: Supreme Court of India
तारीख: 18 मार्च 2025

कहानी की शुरुआत:
3 मार्च 1986 को राजस्थान के एक छोटे से गांव सुरेली में एक भयावह घटना घटी। एक नाबालिग लड़की, जिसे इस फैसले में ‘V’ के नाम से जाना जाएगा, को बेहोश और खून से लथपथ पाया गया। गुलाब चंद नामक एक व्यक्ति ने उसे इस हालत में देखा और पुलिस को रिपोर्ट दर्ज कराई। आरोपी चतरा पर लड़की के साथ बलात्कार का आरोप लगाया गया।

ट्रायल कोर्ट का फैसला:
1987 में ट्रायल कोर्ट ने चतरा को बाल यौन शोषण(Child Sexual Abuse) के अपराध में दोषी ठहराया और उसे 7 साल की सजा सुनाई। हालांकि, हाई कोर्ट ने 2013 में इस फैसले को पलट दिया और आरोपी को बरी कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के बयान में विसंगतियां हैं और मेडिकल सबूत पर्याप्त नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट में अपील:
राजस्थान सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने 40 साल बाद इस मामले को फिर से सुना और एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया।


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सुप्रीम कोर्ट का फैसला: न्याय की जीत

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया और ट्रायल कोर्ट के फैसले को बहाल किया। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने सबूतों का सही आकलन नहीं किया और पीड़िता की चुप्पी को गलत तरीके से आरोपी के पक्ष में मान लिया।

मुख्य बिंदु:

  1. बाल यौन शोषण(Child Sexual Abuse) के मामलों में सबूतों का महत्व:
    • कोर्ट ने कहा कि बाल यौन शोषण(Child Sexual Abuse) के मामलों में पीड़िता का बयान हमेशा स्पष्ट नहीं हो सकता है। ऐसे मामलों में मेडिकल सबूत और परिस्थितिजन्य सबूतों का महत्व बढ़ जाता है।
    • इस मामले में डॉक्टर ने गवाही दी कि पीड़िता के निजी अंगों पर चोट के निशान थे, जो बलात्कार की ओर इशारा करते हैं।
  2. पीड़िता की चुप्पी का मतलब:
    • कोर्ट ने कहा कि एक बच्ची की चुप्पी को उसकी कमजोरी नहीं माना जा सकता है। यह चुप्पी उसके आघात और मानसिक तनाव का परिणाम हो सकती है।
    • कोर्ट ने यह भी कहा कि पीड़िता के बयान के अभाव में भी, अन्य सबूतों के आधार पर दोषी को सजा दी जा सकती है।
  3. हाई कोर्ट की गलती:
    • सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की आलोचना करते हुए कहा कि उसने सबूतों का सही आकलन नहीं किया और पीड़िता के हितों की अनदेखी की।

जजों द्वारा कही गई सटीक टिप्पणी:

“This silence cannot accrue to the benefit of the respondent. The silence here is that of a child. It cannot be equated with the silence of a fully realised adult prosecutrix, which again would have to be weighed in its own circumstances.”

“The tears of ‘V’, have to be understood for what they are worth. Trauma has engulfed her in silence. It would be unfair to burden her young shoulders with the weight of the entire prosecution.”

“Justice would not be served by adopting this approach, especially taking note of the fact that an appeal of the year 1987 was disposed of by the impugned judgment in the year 2013. In other words, it took twenty-six years for the criminal appeal to be disposed of.”


हिंदी अनुवाद:

“यह मौन अभियुक्त के पक्ष में नहीं जा सकता। यह एक बच्चे का मौन है। इसे एक परिपक्व वयस्क पीड़िता की चुप्पी के समान नहीं माना जा सकता, जिसकी परिस्थिति अलग होगी।”

“‘V’ की आँखों से बहते आँसुओं को उनकी वास्तविकता में समझना होगा। पीड़ा ने उसे मौन कर दिया है। यह अन्याय होगा यदि हम इस मासूम बच्ची के कंधों पर पूरे अभियोजन का भार डाल दें।”

“न्याय तब नहीं मिलेगा यदि हम इस मामले को दोबारा हाई कोर्ट में भेज दें, विशेष रूप से यह देखते हुए कि 1987 का अपील मामला 2013 में निपटाया गया था। दूसरे शब्दों में, इस आपराधिक अपील को निपटाने में छब्बीस साल लग गए।”


Click Here to Read Full Judgement


फैसले का प्रभाव और व्यावहारिक निहितार्थ

  1. भविष्य के मामलों के लिए मिसाल:
    • यह फैसला भविष्य में बाल यौन शोषण(Child Sexual Abuse) के मामलों में एक मिसाल के तौर पर काम करेगा। यह बताता है कि पीड़िता के बयान के अभाव में भी, अन्य सबूतों के आधार पर न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है।
  2. वकीलों और न्यायाधीशों के लिए सीख:
    • वकीलों और न्यायाधीशों को ऐसे बाल यौन शोषण(Child Sexual Abuse) मामलों में पीड़िता की मानसिक स्थिति और आघात को समझने की जरूरत है। साथ ही, मेडिकल और परिस्थितिजन्य सबूतों का सही आकलन करना चाहिए।
  3. आम जनता के लिए संदेश:
    • यह फैसला आम जनता को यह संदेश देता है कि न्यायिक प्रणाली में विश्वास रखना चाहिए। हालांकि न्याय में देरी हो सकती है, लेकिन अंत में न्याय जरूर मिलता है।

निष्कर्ष: न्याय की लंबी प्रतीक्षा का अंत

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न सिर्फ पीड़िता को न्याय दिलाता है, बल्कि भविष्य में ऐसे बाल यौन शोषण(Child Sexual Abuse) मामलों के लिए एक मिसाल भी कायम करता है। यह फैसला हमें यह याद दिलाता है कि न्यायिक प्रणाली में विश्वास रखना चाहिए, भले ही न्याय में समय लगे।

आपकी राय:
क्या आपको लगता है कि इस फैसले से भविष्य में बाल यौन शोषण(Child Sexual Abuse) के मामलों में न्याय सुनिश्चित होगा? अपने विचार कमेंट में शेयर करें!

कानूनी सलाह:
यदि आप या आपके जानने वाले किसी भी प्रकार के यौन शोषण का शिकार हुए हैं, तो तुरंत एक वकील से संपर्क करें। याद रखें, न्याय पाने का पहला कदम सही कानूनी सलाह लेना है।


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TAGGED: Child Sexual Abuse, Justice Sanjay Karol, Justice Vikram Nath, sexual assualt, STATE OF RAJASTHAN VERSUS CHATRA, Supreme Court Judgement
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