मुद्दा
क्या कोई पिता अपनी ही संतान के साथ इस हद तक जा सकता है कि उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाए? क्या किसी नाबालिग के खिलाफ अपराध में POCSO Act या IPC, कौन सा कानून प्राथमिकता रखता है? इन्हीं सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला दिया है, जो यौन अपराधों से जुड़े कानूनों के दायरे और सजा की गंभीरता को स्पष्ट करता है।
इस केस में आरोपी को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी, लेकिन हाई कोर्ट ने इस सजा की कठोरता बढ़ा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा? क्या सजा बरकरार रही या इसमें बदलाव हुआ? आइए विस्तार से समझते हैं!
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी व्यक्ति को Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012 (POCSO Act) और भारतीय दंड संहिता (IPC) की बलात्कार से संबंधित धाराओं दोनों के तहत दोषी ठहराया जाता है, तो POCSO Act की धारा 42 यह अनिवार्य करती है कि POCSO Act या IPC में से जहां अधिक कठोर सजा का प्रावधान हो, वही लागू किया जाएगा।
अदालत ने यह भी कहा कि यदि IPC में किसी अपराध के लिए अधिक कठोर सजा का प्रावधान है, तो POCSO Act के तहत कम सजा की मांग को स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह दलील नहीं दी जा सकती कि POCSO Act की धारा 42A एक विशेष कानून के रूप में IPC (जो एक सामान्य कानून है) को ओवरराइड करती है और इसलिए कम सजा दी जानी चाहिए।
Also Read- विवाह टूटने पर तलाक(Divorce) और 25 लाख का गुज़ारा भत्ता(Alimony), पासपोर्ट जब्त करने पर सख्त रोक! Supreme Court
केस की पूरी कहानी
केस का नाम: ग्यानेंद्र सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: 7 मार्च 2025
जज: Justice Vikram Nath, Justice Sandeep Mehta
मामला कैसे शुरू हुआ?
- 2015: ग्यानेंद्र सिंह ने अपनी 9 साल की बेटी के साथ दुष्कर्म किया।
- माँ ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद मामला दर्ज हुआ।
- 2016: निचली अदालत ने आजीवन कारावास और ₹25,000 के जुर्माने की सजा सुनाई।
- 2019: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस सजा को आजीवन कारावास का मतलब प्राकृतिक जीवनभर की जेल कर दिया।
- 2025: सुप्रीम कोर्ट में यह मामला केवल सजा की कठोरता पर सीमित था।
क्या हाईकोर्ट ने गलती की?
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि चूंकि राज्य सरकार की ओर से सजा बढ़ाने के लिए कोई अपील दायर नहीं की गई थी, इसलिए हाईकोर्ट को सजा की कठोरता बढ़ाने का अधिकार नहीं था।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में निचली अदालत द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा को यह कहकर स्पष्ट किया कि यह दोषी के शेष प्राकृतिक जीवन तक जारी रहेगी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह स्पष्टीकरण अनावश्यक था, क्योंकि इससे दोषी को बिना किसी प्रारंभिक रिहाई (premature release) की संभावना के पूरी जिंदगी जेल में बिताने का परिणाम हो सकता था।
Also Read- Supreme Court ने बलात्कार के मामले में आरोपी को क्यों दिया लाभ? जानिए मेडिकल सबूत(Medical Evidence), विरोधी गवाह(Hostile Witness) और FIR में देरी का असर!
Supreme Court का फैसला: क्या IPC या POCSO Act लागू होगा?
मुख्य तर्क:
अपराध IPC की धारा 376(2)(f), 376(2)(i) और POCSO Act की धारा 3/4 के तहत आता है।
👉 बचाव पक्ष:
- पॉक्सो एक विशेष कानून (Special Law) है, इसलिए आईपीसी की धारा लागू नहीं होनी चाहिए।
- पॉक्सो में सजा आईपीसी से कम है, इसलिए आईपीसी के तहत दी गई सजा गलत है।
👉 राज्य सरकार का पक्ष:
- IPC और पॉक्सो दोनों लागू होते हैं।
- IPC की धारा 376(2)(f) में आजीवन कारावास की सजा है, जो पॉक्सो से अधिक कड़ी है।
- इसलिए अधिक कठोर सजा IPC के तहत दी जा सकती है।
Supreme Court का निर्णय:
✅ Indian Peanal Code और POCSO दोनों के तहत दोषसिद्धि सही है। ✅ हाईकोर्ट द्वारा ‘प्राकृतिक जीवनभर’ की सजा देना गलत था। ✅ आजीवन कारावास को 30 साल की सजा में बदल दिया गया। ✅ ₹5,00,000 का जुर्माना भी लगाया गया।
पॉक्सो अधिनियम की धारा 42 विशेष रूप से सजा की मात्रा से संबंधित है। यह साफ तौर पर कहती है कि अगर कोई अपराध पॉक्सो अधिनियम, आईपीसी या सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत दंडनीय है, तो दोषी व्यक्ति को उस कानून के तहत सजा दी जाएगी, जिसमें अधिक कठोर दंड का प्रावधान है। यानी अगर IPC के तहत सजा ज्यादा है, तो IPC लागू होगा, और अगर POCSO अधिनियम के तहत सजा ज्यादा है, तो वही लागू होगी।
वहीं, पॉक्सो अधिनियम की धारा 42A प्रक्रियात्मक नियमों से जुड़ी है। यह बताती है कि जहां POCSO अधिनियम और कोई अन्य कानून आपस में असंगत हों, वहां पॉक्सो अधिनियम को प्राथमिकता दी जाएगी। हालांकि, इसका यह मतलब नहीं है कि धारा 42A, धारा 42 को ओवरराइड कर सकती है। यानी, सिर्फ यह तर्क देकर कि पॉक्सो अधिनियम एक विशेष कानून है, IPC में दी गई कठोर सजा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
अन्य मामलों का संदर्भ
कोर्ट ने शिव कुमार बनाम कर्नाटक राज्य और नवस बनाम केरल राज्य जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि हर अपराध “दुर्लभतम” (rarest of the rare) नहीं होता, और ऐसे मामलों में एक निश्चित अवधि की सजा दी जा सकती है।
Click Here to Read Full Order
इस फैसले का भविष्य पर प्रभाव
1. POCSO vs IPC – कौन सा कानून अधिक प्रभावी?
यह फैसला स्पष्ट करता है कि आईपीसी और पॉक्सो साथ-साथ लागू हो सकते हैं। अदालत अधिक सख्त सजा के लिए आईपीसी को प्राथमिकता दे सकती है।
2. नाबालिगों के खिलाफ अपराध पर सख्ती बढ़ेगी
इस फैसले से यह संदेश जाता है कि न्यायपालिका ऐसे अपराधों पर कठोर रुख अपनाएगी और अपराधियों को कोई राहत नहीं मिलेगी।
3. ‘प्राकृतिक जीवनभर जेल’ की सजा अब आसानी से नहीं दी जाएगी
हाईकोर्ट द्वारा कठोर सजा को संशोधित कर 30 साल की सजा में बदला गया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि हर अपराध में अधिकतम सजा देना न्यायसंगत नहीं है।
Also Read- CrPC Section 319: अपराध में शामिल नए अभियुक्तों को मुकदमे में जोड़ने की शक्ति
निष्कर्ष
इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने सजा को संतुलित किया और यह तय किया कि कठोरतम सजा केवल दुर्लभतम मामलों में ही दी जानी चाहिए।
अगर आप कानूनी मामलों या आईपीसी और पॉक्सो कानूनों को बेहतर समझना चाहते हैं, तो यह फैसला आपके लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ बन सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने पॉक्सो अधिनियम की धारा 42 का हवाला देते हुए कहा कि जब कोई अपराध पॉक्सो अधिनियम और आईपीसी दोनों के तहत दंडनीय हो, तो दोषी को उस कानून के तहत सजा दी जाएगी जो अधिक कठोर दंड का प्रावधान करता है।
अदालत ने माना कि IPC की धारा 376(2)(एफ) और 376(2)(आई) के तहत दी जाने वाली सजा, पॉक्सो अधिनियम की तुलना में अधिक कठोर है, क्योंकि पॉक्सो अधिनियम में न्यूनतम 10 वर्ष और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है, जबकि आईपीसी के तहत शेष प्राकृतिक जीवन तक आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है।
💬 आप इस फैसले के बारे में क्या सोचते हैं? क्या IPC और POCSO के तहत मिली सजा उचित है? कमेंट में अपनी राय दें!